Saturday 28 April 2012

मेरे शहर की गलियां बहुत तंग हैं !


मेरे शहर की गलियां बहुत तंग हैं  !!

हर तरफ शोर है , ज़िन्दगी कहीं खामोश है ,
बदलते वक़्त की तस्वीर है , 
कुछ नये लोग , नयी भाषा है ,
तहज़ीब के मिटने लगे अब कुछ निशां हैं ,
छिन गया है सुकून परिंदों का भी ,
अब बचने वाला कहाँ इन्सां है !!

मेरे शहर की गलियां बहुत तंग हैं  !!

ज़िन्दगी इतनी व्यस्त है , न किसी के पास वक़्त है ,
जाने कौन छीन ले गया है खुशियाँ हमसे ,
उम्मीद लगाई थी जिस बाप ने अपने बेटे से ,
वो अब जाते हैं काम पे अपने RETIREMENT के बाद से ,
घर तो बना लिए बड़े , लोगों ने अपने यहाँ ,
लेकिन ये दिल क्यूँ इतना छोटा हो गया , मेरे शहर के लोगों का ,
स्कूल जाते बच्चे , कहीं बूढ़े-बुजुर्ग देर तक किनारे खड़े रहते हैं ,
कौन उनकी उँगलियों को पकड़े , कौन उनको रास्ता पार कराये !!


मेरे शहर की गलियां ही नहीं , अब तो दिल भी बहुत तंग हो गये हैं !!

Friday 6 April 2012

रोते हुए बच्चन (CHILDREN) को आज कोई हँसावत नाही !!





कुछ अपनी बोल-चाल की भाषा में लिखने की कोशिश की है... 
दिल के कुछ अरमान निकाले हैं...ज़रा ग़ौर फ़रमाएगा...
और मेरी त्रुटियों को कृपया मुझे जरूर बताएं... 


जब तुम पास होत हौ अपने , तो हमका कौनव साथी की जरूरत नाही ,
तुम्हार नैन खुबसूरत हैं इतने , कि निगाह हमार हटत नाही !!
ज़िन्दगी की गाड़ी चलत है आपन खडामा-खडामा , कौनव बैल-गाड़ी की हमका जरूरत नाही !!
नाम हमार है "कल्प" हम अपनी धुन में रहत है मस्त , हमका कौनव "टेंशन" नाही !! 

गेहूँ के साथ पिस जात हैं घुन भी , आम-आदमी की आज इससे ज्यादा कीमत नाही ,
विज्ञान चला लगाने सीढ़ी सरग (स्वर्ग) मा , धरती पर पड़ा इंसान उनका दिखावत नाही !!
उजले कपड़े पहन के नेता चले है सब , कबहूँ अपने गिरेबान मा झांकत नाही, 
तन साफ़ करे से कबहूँ मन साफ़ न होवे , भगवान् बसत है ह्रदय मा उनका कबहूँ पूजत नाही !!

कर डालव कितनेव "घोटाला" , कोयला-सीमेंट-पत्थर कोई खावत नाही ,
बंद करो "भ्रष्टाचारियों" को देना "अनाज" , कहत आज हर किसान ,
ठूँसों "रूपया" उनके मुंह मा , देखें काहे रूपया खावत नाही !!    
जइहव एक दिन धरती माँ की शरण मा सब , या बात काहे अपने जहन मा उतारत नाही !!

अब तो लोग सबेर-सबेरे नेता-मंत्री-संत्री , की चौखट चूमत है ,
धरती माता की माटी , कोई अपने सर लगावत नाही !!
गददारन के गोड़न (LEG) मा जाके धरत है सर आपन , माँ - बाप के पैर कोई छूवत नाही !! 
बुदधी होय गयी है भ्रष्ट लोगन की , कौड़ी-कौड़ी बेचत ईमान आपन ,
रोते हुए बच्चन (CHILDREN)  को आज कोई हँसावत नाही !!  


कुछ पंक्तियाँ और जोड़ना चाहूँगा...

छोड़ घर आपन जाके बसे बिदेश मा , माँ - बाप की कबहूँ लियत खबर नाही ,
एक कमरा मा पालिन जिनका , अब उनके चार (४) कामरन मा माँ-बाप का बसर नाही !!
पिछली बारिश मा गिर गयी छत घर की , लेकिन अपने लड़िकन से माँ-बाप कबहूँ बतावत नाही ,
अरे लौट आओ माँ-बाप के चरणन मा , सेवा करो उनकी , स्वर्ग यही है धरती पर और कौनव दूजा नाही !! 

Wednesday 28 March 2012

चलो धरती का सीना चीर कर कुछ बीज बोयें..



एक छोटी सी कोशिश अपने ज़ज्बात को कहने की....
कुछ आधी-अधूरी सी है , लेकिन सीधी और सच्ची है...

चलो धरती का सीना चीर कर कुछ बीज बोयें ,
आने वाली नस्लों को कुछ मीठे फल दे जायें ,
बातों में ही जाया करते हैं हम , कीमती वक़्त को अपने ,
चलो कलम छोड़ कर अब हाथों में , फावड़े - कुदाल उठायें !!

चलो धरती का सीना चीर कर कुछ बीज बोयें...

भारत की जनता को न नयी तकनीक चाहिए ,  
हर भूखे को यहाँ बस दो रोटी चाहिए ,
पहले यही होनी हमारी प्राथमिकता चाहिए ,
न अब हमें नेताओं के झूठे वादे-भाषण सुनने हैं ,
भारत देश को फिर सुभाष-भगत-आज़ाद चाहिए !!

चलो धरती का सीना चीर कर कुछ बीज बोयें...

अपना भारत तो गावों में रहता है ,
इसे वहीँ सांस लेने दो , जीने दो , बढ़ने दो ,
"खेत" जोतने वाले हाथों में "हल" ही रहने दो ,
वरना जिस दिन "कुछ और" आ गया ,
तो देश में एक भी "गद्दार" न रहने पायेगा !!

चलो धरती का सीना चीर कर कुछ बीज बोयें...
~♥ कल्प वर्मा ♥~

Friday 2 March 2012



हर लम्हें में ख़ुशी नहीं होती , हर रिश्ते में प्यार नहीं मिलता ,
हर शाख़ पे गुल नहीं खिलते , हर शख्स अजीज़ नहीं होता ,
हर रात की सुबह तो होती है लेकिन , हर राह पे मंज़िल नहीं मिलती !!

हर दिल में प्यार नहीं होता , हर सीप में मोती नहीं मिलता ,
हर परवाने को शमा नहीं मिलती , हर जख्म का मरहम नहीं होता ,
कटी पतंग की डोर तो मिल जाती है लेकिन , जिस्म से जुदा रूह को साँसे नहीं मिलती !!

बिन पंख परिंदे हवाओं में नहीं उड़ते , बिन बादल कभी बरसात नहीं होती ,
हर फूल में कांटे नहीं होते , चिराग तले कभी रौशनी नहीं मिलती ,
सूरज तो रोज़ निकलता है लेकिन , सो गए जो चिर-निद्रा में बीती रात , उनके नसीब में कभी सुबह नहीं होती !!

ज़िन्दगी कभी रूकती नहीं , और वक़्त किसी के लिए ठहरता नहीं ,
साहिलों की रेत पे कभी घर नहीं बसते , हर सितारा चाँद के करीब नहीं होता ,
चलते तो सभी हैं ज़िन्दगी की राह में लेकिन , हर मुसाफिर को कारवां नहीं मिलता !!

हर आरज़ू पूरी नहीं होती , हर ख़्वाब सच नहीं होते ,
हर पत्थर में भगवान नहीं बसते , हर मिट्टी में सोना नहीं मिलता ,
पेट तो सबको दिए यहाँ ऊपर वाले ने लेकिन , हर भूखे को रोटी नहीं मिलती !!

दरिया के किनारे नहीं मिलते , कभी कागज़ के फूलों में खुशबू नहीं मिलती ,
सूनी आँखें कभी ख़्वाब को तरसती हैं , कभी हर आहट पे निगाहें चौखट पे होती ,
कभी लाखों के कपड़ों में भी तन ढकता नहीं , फिर देखो कहीं माँ का आँचल है , लाश पे कफ़न नहीं मिलता !!
~♥ कल्प वर्मा ♥~

Monday 27 February 2012






मैं उसे चाहता हूँ जो मेरा नहीं है...
उसे माँगता हूँ जो मुझे मिल नहीं सकता...
ज़िन्दगी के उन हसीन ख़्वाबों की ताबीर चाहता हूँ...
जिसे वक़्त ने कभी अपने लम्हों में लिखा ही नहीं...!! ~♥ कल्प ♥~




आओ एक नयी कहानी लिखें ~♥ kalp ♥~



आओ एक नयी कहानी लिखें
फिर से अपनी ज़िन्दगी की एक रवानी लिखें...

मुददतें गुजर गई हैं खुद से बात किये
पास मेरे बैठो , ख़ामोश लबों से कुछ बात करें
आइना देखे भी अब तो बरसों बीत गए हैं
पहलू में आओ , तेरी आखों में अपना दीदार करें

चलो फिर से एक नयी कहानी लिखें...

फिर से हम - तुम अजनबी बनें
न तुम हमें जानो, न हम तुम्हें पहचाने
तन्हा राहों पे फिर से हम , साथ साथ चलें
मोहब्बतों में गुज़रे लम्हों को, फिर से जिन्दा करें

चलो फिर से एक नयी कहानी लिखें

कुछ अधूरे - कच्चे ख्वाबों की दास्ताने लिखें
ख्वाहिशों में अपने प्यार के रंग भरें
चाँद को हथेली पे रखके तुझसे निगाहें चार करें
सितारे तोड़ कर लायें , फिर से तेरी माँग भरें

चलो फिर से एक नयी कहानी लिखें,

नीले आसमान पर , चमकते हर सितारे पर
दिल से निकले हुए जज़्बातों की ऐसी स्याही से
जो न कभी मिटे , न कभी धुंधली हो
जैसे , कभी न मिटने वाले अपने प्यार की , वही कहानी लिखें

गुज़रे हुए पलों में फिर से ज़िन्दगी जियें
चलो फिर से एक नयी कहानी लिखें ~♥ कल्प ♥~


Friday 10 February 2012

~♥ कल्प ♥~ की कल्पनाओं की उड़ान...


~♥ कल्प ♥~ की कल्पनाओं की उड़ान...
...जमीं से आसमां तक ... कभी इस जिस्म से रूह तक ...मचलती हुई ...
...वक़्त की हर दहलीज पर ... कभी उस चौखट पर ... जहाँ मेरी खुशियाँ रहती हैं...
...ज़िन्दगी के हर अनछुए पहलू पर...उन हर अनदेखे ख्वाबों पर... जो कभी मेरी पलकों पे सजा करते थे ...
... जो मुझे मिले नहीं ...उन्हीं पलों में ख़ामोश गुज़रती ज़िन्दगी ...की कल्पनाओं की उड़ान....  


kalp

kalpana