हर तरफ शोर है , ज़िन्दगी कहीं खामोश है ,
बदलते वक़्त की तस्वीर है ,
कुछ नये लोग , नयी भाषा है ,
तहज़ीब के मिटने लगे अब कुछ निशां हैं ,
छिन गया है सुकून परिंदों का भी ,
अब बचने वाला कहाँ इन्सां है !!
मेरे शहर की गलियां बहुत तंग हैं !!
ज़िन्दगी इतनी व्यस्त है , न किसी के पास वक़्त है ,
जाने कौन छीन ले गया है खुशियाँ हमसे ,
उम्मीद लगाई थी जिस बाप ने अपने बेटे से ,
वो अब जाते हैं काम पे अपने RETIREMENT के बाद से ,
घर तो बना लिए बड़े , लोगों ने अपने यहाँ ,
लेकिन ये दिल क्यूँ इतना छोटा हो गया , मेरे शहर के लोगों का ,
स्कूल जाते बच्चे , कहीं बूढ़े-बुजुर्ग देर तक किनारे खड़े रहते हैं ,
कौन उनकी उँगलियों को पकड़े , कौन उनको रास्ता पार कराये !!
मेरे शहर की गलियां ही नहीं , अब तो दिल भी बहुत तंग हो गये हैं !!
कौन उनकी उँगलियों को पकड़े , कौन उनको रास्ता पार कराये !!
मेरे शहर की गलियां ही नहीं , अब तो दिल भी बहुत तंग हो गये हैं !!